फुर्सत के कुछ खास पलो में
एक दिन खोल बैठा
एक पुस्तक इतिहास कि
जैसे ही मेरे अँगुलियों ने
पलटे कुछ पन्ने,
तो फरफराते पन्नों
से उछल उछल कर बहुत सारे शब्द
करने लगे गुण-गान
कि कैसे बंद पड़ी थी म्यान
जहाँ से निकली तलवार
जिसके कारण बन गए राजा महान
कैसे राजाओं ने, रण-बांकुड़ो ने
दुश्मनों के खिंच लिए जबान
किसने बनवाया ताजमहल या कुतुबमीनार
किसके प्यार कि ये थी दास्तान.........
पर उस इतिहास कि पुस्तक
के हर पन्नो पर
उन उछलते कूदते शब्दों से बने वाक्य
जहाँ भी थमते थे
जहाँ भी होता था कोमा या पूर्ण विराम!
कुछ अनदेखे चेहरे
कुछ बेनामी लोगो
के साहस और दर्द कि आवाज
धीमे से कह रही थी.....
"इतिहास में हम बेशक हैं नहीं
पर हमने भी रचा है इतिहास.............."
एक दिन खोल बैठा
एक पुस्तक इतिहास कि
जैसे ही मेरे अँगुलियों ने
पलटे कुछ पन्ने,
तो फरफराते पन्नों
से उछल उछल कर बहुत सारे शब्द
करने लगे गुण-गान
कि कैसे बंद पड़ी थी म्यान
जहाँ से निकली तलवार
जिसके कारण बन गए राजा महान
कैसे राजाओं ने, रण-बांकुड़ो ने
दुश्मनों के खिंच लिए जबान
किसने बनवाया ताजमहल या कुतुबमीनार
किसके प्यार कि ये थी दास्तान.........
पर उस इतिहास कि पुस्तक
के हर पन्नो पर
उन उछलते कूदते शब्दों से बने वाक्य
जहाँ भी थमते थे
जहाँ भी होता था कोमा या पूर्ण विराम!
कुछ अनदेखे चेहरे
कुछ बेनामी लोगो
के साहस और दर्द कि आवाज
धीमे से कह रही थी.....
"इतिहास में हम बेशक हैं नहीं
पर हमने भी रचा है इतिहास.............."