हाँ !
तुम्हारा
वो पहला
स्पर्श
!!
है मेरी
में
कहीं
समाहित
संयोजित
सहेजा
हुआ !!
जो देती
है
एक बहुत
अलग सा कंपन
तरंग !!
वैसे ही
जैसे
केहुनी पर
कभी कभी
टन्न से
कुछ लगता है
तो झनझना
उठता है
पूरा
शरीर !! सर्वस्व!!
पर मैं
इस
झन्नाहट को
महसूसना
चाहता हूँ
बराबर!
हरदम !!
संभव है ??
ए जिंदगी! तू खुद एक तरंग है
कंपकंपी देती रहती है !!