जिंदगी की राहें

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Sunday, October 25, 2015

पहला प्रेम



पहला प्रेम
जिंदगी की पहली फुलपैंट जैसा
पापा की पुरानी पेंट को
करवा कर आल्टर  पहना था पहली बार !
फीलिंग आई थी युवा वाली
तभी तो, धड़का था दिल पहली बार !

जब जीव विज्ञान के चैप्टर में
मैडम , उचक कर चॉक से
बना रही थी ब्लैक बोर्ड पर
संरचना देह की !
माफ़ करना,
उनकी हरी पार वाली सिल्क साडी से
निहार रही थी अनावृत कमर,
पल्लू ढलकने से दिखी थी पहली बार!!

देह का आकर्षण
मेरी देह के अंदर
जन्मा-पनपा था पहली बार
हो गया था रोमांचित
जब अँगुलियों का स्पर्श
कलम के माध्यम से हुआ था अँगुलियों से
नजरें जमीं थी उनके चेहरे पर
कहा था उन्होंने, हौले से
गुड! समझ गए चैप्टर अच्छे से !

मेरा पहला सपना
जिसने किया आह्लादित
तब भी थी वही टीचर
पढ़ा रही थी, बता रही थी
माइटोकॉंड्रिया होता है उर्जागृह
हमारी कोशिकाओं का
मैंने कहा धीरे से
मेरे उत्तकों में भरती हो ऊर्जा आप
और, नींद टूट गयी छमक से!!

पहली बार दिल भी तोडा उन्होंने
जब उसी क्लास में
चली थी छड़ी - सड़ाक से
होमवर्क न कर पाने की वजह से
उफ़! मैडम तार-तार हो गया था
छुटकू सा दिल, पहली बार
दिल के अलिंद-निलय सब रोये थे पहली बार
सुबक सुबक कर!
जबकि मैया से तो हर दिन खाता था मार !

मेरे पहले प्रेम का
वो समयांतराल
एक वर्ष ग्यारह महीने तीन दिन
नहीं मारी छुट्टियां एक भी दिन!!

वो पहला प्रेम
पहली फुलपैंट
पहली प्रेमिका
खो चुके गाँव के पगडंडियों पर
हाँ, जब इस बार पहुंचा उन्ही सड़कों पर
कौंध रही थी जब बचकानी आदत! सब कुछ
मन की उड़ान ले रही थी सांस
धड़क कर !!
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कन्फेशन जिंदगी के ....


(ये कविता प्रतिलिपि के ऑनलाइन साईट पर प्रतिलिपि कविता सम्मान के लिए चयनित हुई है, पहला प्रेम (मुकेश कुमार सिन्हा) इस लिंक पर जाकर लाइक/कमेंट/रेटिंग/शेयर करें, .........इन्तजार रहेगा !!


2 comments:

रचना दीक्षित said...

फुल पैंट का प्रेम बहुत अच्छा लगा.

Pallavi saxena said...

how sweet :)