जिंदगी की राहें

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Tuesday, December 20, 2016

कहीं इमरोज न बन जाऊं


प्रेम से पल्लवित कोंपलें
होती हैं जवां,
दो नादाँ खुशमिजाज और चहकते दिलों में
हिलोरे मारती है चाहतें
शायद हो कोई जूलियट, लैला या रांझा 
जो थामे उसके हाथों को
और प्यार भरी नजरों से ताकते हुए कह भर दे
वही घिसे पिटे तीन शब्द
आई लव यू !
बदलती उम्र का तक़ाज़ा
या देर से उछला प्रेम स्पंदन
या यूँ कह लो
प्रेम भरी साहित्यिक कविताओं का
नामालूम असर
कहीं अन्दर से आई एक आवाज
चिंहुका प्रेम उद्वेग
हो मेरे लिए भी कोई अमृता -
जो मेरे पीठ पर नाख़ून से
खुरच कर लिख सके
किसी साहिर का नाम!
कहीं इमरोज न बन जाऊं !
~मुकेश~
100कदम की प्रतिभागी 

Thursday, December 1, 2016

तड़ित


फटे हुए एम्प्लीफायर स्पीकर की तरह
गडगड़ाता बादलनमी से लबालब
ट्रांसफॉर्मर के कनेक्शन वाले मोटे तार से
ओवरलोडेड पॉवर सप्लाई के कारण
कड़ कड़ाती बिजलीजो दूर तलक़ दिख रही

किसी रोमांटिक मूवी की बेहद ख़ूबसूरत अभिनेत्री सी
भीगे पल्लू के साथ भागती बारिश
ठहरती/थमती कभी तेज चालों से झनमनाती
कभी लयबद्ध तो कभी बिना किसी लय के

सारा फैला एक टुकड़ा आकाश
राजकपूर की मंदाकिनी सा
गीला-गीला हो उठा,
है हर एक की नजर
आकाश के विस्तार पर जमी

बिखरे टूटे पत्ते व
भीगी सौंधी मिट्टी की महक
चुपके से कह उठी
हाँ वो अभी अभी तो आई थी

एक या दो बूँद
मेरी पलकों पर भी छमकी
आखिर उसकी ही वजह से
बेमौसम मेरे मन का मानसून
टपक पड़ा

स्मृतियों में दरकती मेरी तड़ित
कहींतुम मुझे जला मत देना ..........

पल भर में !!
27 नवम्बर के दैनिक जागरण में 100 कदम की समीक्षा